Wednesday, March 31, 2010
बिना अमिताभ की शोले
विभिना समाचार पत्रों ने अमिताभ और कांग्रेस के विवाद
को कार्टून के माध्यम से कुछ यों दिखाया.
ये कार्टून नईदुनिया, दैनिक भास्कर, और यश भारत
से साभार लिए गए हैं.
Tuesday, March 30, 2010
मोम बन जाओ की ....
इन दिनों अमिताभ बच्चन को लेकर घमासान चल रहा है। अमिताभ बांद्रा स्थित सी-लिंक के उद्धाटन के लिए क्या पहुंचे सियासत में हलचल तेज हो गयी। समझ में नहीं आ रहा कि
समस्या कहां हैै? अमिताभ के गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर होने पर या फिर कांग्रेस से उनके टूट चुके संबंधों पर। लोग तो अमिताभ को बिग-बी के नाम से जानते हैं। बिग-बी यानि सदी का सितारा। इसके अलावा और कुछ नहीं। राजनीति तो शायद उनके लिए पुरानी बात हो गयी। एक अभिनेता के रूप में नेताओं को उन्हें स्वीकार करने में क्यों दिक्कत है। मैं कोई अमिताभ का घोर प्रशंसक नहीं हूंं लेकिन सी लिंक में उनकी मौजूदगी को लेकर बखेड़ा नहीं होना चाहिए था। अगर अमिताभ से लोगों ंको इतनी तकलीफ है तो केंद्र सरकार के पोलियो वाले विज्ञापन जिसमें तमाम क्रिकेटरों के साथ बिग-बी भी दिखाई देते हैं बंद क्यों नहीं कर दिया जाताऔर अंत में मख्दूम जी का एक शेर याद आ रहा है....
समस्या कहां हैै? अमिताभ के गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर होने पर या फिर कांग्रेस से उनके टूट चुके संबंधों पर। लोग तो अमिताभ को बिग-बी के नाम से जानते हैं। बिग-बी यानि सदी का सितारा। इसके अलावा और कुछ नहीं। राजनीति तो शायद उनके लिए पुरानी बात हो गयी। एक अभिनेता के रूप में नेताओं को उन्हें स्वीकार करने में क्यों दिक्कत है। मैं कोई अमिताभ का घोर प्रशंसक नहीं हूंं लेकिन सी लिंक में उनकी मौजूदगी को लेकर बखेड़ा नहीं होना चाहिए था। अगर अमिताभ से लोगों ंको इतनी तकलीफ है तो केंद्र सरकार के पोलियो वाले विज्ञापन जिसमें तमाम क्रिकेटरों के साथ बिग-बी भी दिखाई देते हैं बंद क्यों नहीं कर दिया जाताऔर अंत में मख्दूम जी का एक शेर याद आ रहा है....
कोई जलता ही नहीं कोई पिघलता ही नहीं
मोमबन जाओ पिघल जाओ कि कुछ रात कटे
Monday, March 29, 2010
मगरूर इंसान
यह तस्वीर hydrabad में सोमवार को हुए
फसाद की हैं. एक आदमी खून से लथपथ पड़ा हैं.
चारों ओर पत्थर पड़े हैं. क्या उपर वाले ने
इंसान नाम का प्राणी इसीलिए बनाया था.
फसाद की हैं. एक आदमी खून से लथपथ पड़ा हैं.
चारों ओर पत्थर पड़े हैं. क्या उपर वाले ने
इंसान नाम का प्राणी इसीलिए बनाया था.
इंसान कितना मगरूर हो रहा हैं
वतन कोने में पड़ा रो रहा हैं
एक तरफ आतंक का बोलबाला
एक तरफ साम्प्रदायिकता ने मुह खोला.
किसी का बाप मर रहा हैं, किसी का बेटा.
किसी को किसी की नहीं हैं चिंता.
फोटो साभार ap
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